Wednesday, March 31, 2010

हाँ चलो




यदा कदा या सर्वदा,
यहाँ वहाँ या सारा जहाँ ,
कुछ फूलों में या सारी क्यारी में...

क्या?

तुम्हारा एहसास, तुम और तुम्हारी खुशबु...

मतलब?

तुम नहीं समझोगी, शायद समझना भी नहीं चाहती....

ऐसे कैसे?

बस ऐसा ही है,
तेरे में कोई बात है जो तुझे नहीं मालूम...

आगे मै कह देती हूँ,
मै हीरा और तुम जौहरी, और हीरे की पहचान सिर्फ जौहरी को होती है, है ना?


नहीं, हीरा तो पत्थर है और तुम मोम,
लेकिन पिघल मै रहा हूँ तुम्हारी याद में.

चल हट, बाते बनाना तो कोई तुमसे सीखे,

और दिल जलाना तुमसे...

खुल के कहो

तो ये लो...
तुने जो हंसाया कोई और क्या हंसायेगा,
एक बार जो आ गया, वो लौट कर क्या जायेगा.
अंधी है तू जो तुझे दिखाई नहीं देता,
अब मेरा प्यार तुझे संजय ही दिखायेगा.

हम्म, तो ये बात है, लेकिन मैंने तो तुम्हे उस नज़र से कभी देखा ही नहीं

मैंने तो एक नज़र भर के भी नहीं देखा,
फिर भी इन आँखों को सिर्फ तुम हीं दिखती हो....

हम्म, अब समझ में आ रहा है..

क्या?

वही, मै, मेरा एहसास और मेरी खुशबु...

फिर, तुम क्या कहती हो?

सच कहूँ या झूठ?

तुम्हारी हर बात मुझे सच्ची लगती है....

तो सुनो,
तुम हो बहुत भोले, जो इतना भी नहीं समझते,
बरसते हुए बादल, शायद ही कभी गरजते,
बयां कर जाते बहुत कुछ, मगर कभी कुछ ना कहते.
तुम्हारी हर छोटी छोटी बात, और हर एक बात मुझे बहुत ही भाती है,
ऐसा कोई पल नहीं, जिसमे तुम्हारी याद नहीं आती है.
इतने शांत होकर भी इतने नटखट हो,
कभी एकदम बुज़ुर्ग तो कभी बच्चे हो,
लगते बहुत अच्छे हो, मगर एक ही शिकायत है,
कभी अपनी उम्र भी जी लो...


ऐसा क्या?

हाँ..

तो चलो आज,
तुम्हे बाँहों में भर,
जन्नत की शैर कर आयें,
कुछ अधजलों को पूरा जला आयें,
जमीं पे उड़, हवा में तैर आयें,
पानी पे चलें और तेरी आँखों में डूब जायें.
तेरी आँखों में डूब जायें.

हाँ चलो...

Monday, March 29, 2010

कल और आज

कल तक जो बाहें कस लेती थी मुझे, आज क़त्ल करने को बेताब है,
कल जिन बातों में इतनी नमी हुआ करती थी, आज भर गयी उनमे आग है.
कल तक जो मोहब्बत की अलाप करते थे , आज उनके जुबान पे नफरत की राग है,
कल और आज में इतना ही फर्क है तो कैसे कह दूँ कल जन्नत था तो आज अभिशाप है.