Monday, June 14, 2010

किनारा





मन उदास है,
तु जो न पास है.

तेरे ही आसरे,
चले आये किनारे.
मन तुझे हीं पुकारे.
ढूंढे तेरे सहारे.

चली आ, चली आ.
मन उदास है,
तु जो न पास है.

छुप गयी हो कहाँ,
कुछ इशारा तो दो,
कोई निशानी तो दो.
क्यूँ हो खफा,
ऐसी क्या है खता,
जो तेरी एक दरस को,
इतना तडपे हम.
तेरी हीं खोज में,
बावरा ये मन.

चली आ, चली आ.
मन उदास है,
तु जो न पास है.

मन उब रहा है,
इन लहरों से बातें करके,
बादलों में तुझे ढुंढते,
तेरी राह तकते.
अब तो ये भी मुझपे हंसते,
और कहते,
तु नहीं आएगी.
रह गया हुं अकेले,
चली आ चली आ.

मन उदास है,
तु जो न पास है,
चली आ चली आ.