Tuesday, January 19, 2010

कोशिश

हवा से तेज़ भागती जिंदगी,
न जाने कितने ही चहरे रोज़ दिखते हैं.

चमक रहे हैं उस सख्स के दांत,
और बिच में लहलहाती जीभ.
बैठा था मेरे बगल वाली सीट पर,
मै खिड़की से बहार झांकते,
वादियों में खोया हुआ बोल पड़ा था ख़ुद से,
प्यार जब पहला प्यार बन जाये तो,
समझ लेना गिनती शुरू हो गयी है,
और उसने फब्बारों से भींगा दी थी मेरी क़मीज |

आकर धुप वाली खिड़की पर बैठ गया,
बाहर स्कूटर पर पीछे बैठा एक,
इससे भी ज्यादा खुश सख्स दिख गया,
निचे उसकी ख़ुशी का कारन भी दिख गया.
हाँथ में मुह के बल लटका मुर्गा.
कितना अंतर था दोनों में -
एक सीधा तो दूसरा उल्टा,
एक ढंका तो दूसरा नंगा.
ज़िन्दगी, एक की हकीकत तो दुसरे के सपने,
एक काटने तो दूसरा कटने.
एक ही समानता थी-
दोनों के मुह में पानी था.

सवाल ये है कि, ये सब अचानक याद कैसे आये.
तुम्हे भुलाने की कोशिश है, इतना भी नहीं जानती !