Sunday, November 27, 2011

कुछ अपना सा


तुम चले गए,
कोई बात नहीं,
रहते भी यहाँ,
तो कोई बात नहीं.

कोई बात हीं नहीं,
तो क्या बात हो?
कोई बात भी हो,
तो क्या बात हो?

क्यूँ जीभ को नाचना,
क्यूँ साँस को भागना,
क्यूँ दांत को दिखाना,
क्यूँ कंठ को जगाना?

वैसे रुक जाते तो ठीक था,
आज आंखें नम न होतीं,
चले भी गए तो ठीक हीं है,
उदासी हीं सही, कुछ अपना सा है.

Saturday, July 23, 2011

एक सवाल




जिस से मिलो, वही बन जाते हो,
और जब सब मिल जाते तो तुम आ जाते हो.
सब में तुम्ही हो, और तुममे सभी हैं,
सफ़ेद रंग हो या भगवान ?

Wednesday, January 26, 2011

हम मनचले

हम मनचले,
सिर्फ मन की सुनते हैं,
और मन की हीं करते हैं.

वहीँ चले जाते, जहाँ मन ले जाए.
वही अपना ठिकाना, जहाँ मन ठहर जाए.
गीत वही गाते, जो मन गुनगुनाये.
रित वही अपनी, जो मन को भा जाये.

हमे नहीं आता बाते बनाना.
परदे लगाना और सच को छुपाना
मीठी-मीठी बातों से ठगना- ठगाना.
रसगुल्ले के बिच में मिर्ची दबाना.

हम मन के हैं साफ, बातें करते बेबाक.
न उंच नींच का भेद, न शातिर जज्बात.
बढाते हैं भाईचारा, बांटते हैं प्यार.
ऐसा ही है हमारा मनचला संसार.

हम मनचले,
हम फुल भी हैं और तलवार भी हैं,
हम कल भी थे और आज भी हैं.