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दादाजी ने कहा था -
" जीभ की नमीं बनाये रखना.
जीभ में नमीं हो, तो हर बात में नमीं हो.
मुस्कान में नमीं हो, जज्बात में नमीं हो.
जैसे नम जमीं, पेंड पौधे की जड़ को शितलता देते हैं और वो फल फुल उठते हैं और एकदम हरे भरे खिलखिलाते रहते हैं.
वैसे हीं अगर बात में नमीं हो तो लोगो का मन शितल होता है और वो बहुत खुश और खिलखिलाते रहते हैं."
हाय रे दुर्भाग्य!
Global warming की वजह से नमी बनाये रखना कितना मुश्किल हो गया है.
सोचता हूँ, मेरा Boss इतना झुंझलाया हुआ कड़वा क्यूँ बोलता है.
क्या करे बेचारा - Global warming की मार के बाद जो भी नमीं बची रह गयी होगी वो अपने Boss की "जड़" को शितल करने में सुखा दिया होगा.
कोई आश्चर्य की बात नहीं वो उन्ही क पदोन्नति क्यू करता है जो सामूहिक रूप से अब उसकी "जड़" को शितल करने में लगे हुए हैं.
मै तो अभी भी अपनी नमी दादाजी के कहे अनुसार खर्च करता हूँ.