हवा से तेज़ भागती जिंदगी,
न जाने कितने ही चहरे रोज़ दिखते हैं.
चमक रहे हैं उस सख्स के दांत,
और बिच में लहलहाती जीभ.
बैठा था मेरे बगल वाली सीट पर,
मै खिड़की से बहार झांकते,
वादियों में खोया हुआ बोल पड़ा था ख़ुद से,
प्यार जब पहला प्यार बन जाये तो,
समझ लेना गिनती शुरू हो गयी है,
और उसने फब्बारों से भींगा दी थी मेरी क़मीज |
आकर धुप वाली खिड़की पर बैठ गया,
बाहर स्कूटर पर पीछे बैठा एक,
इससे भी ज्यादा खुश सख्स दिख गया,
निचे उसकी ख़ुशी का कारन भी दिख गया.
हाँथ में मुह के बल लटका मुर्गा.
कितना अंतर था दोनों में -
एक सीधा तो दूसरा उल्टा,
एक ढंका तो दूसरा नंगा.
ज़िन्दगी, एक की हकीकत तो दुसरे के सपने,
एक काटने तो दूसरा कटने.
एक ही समानता थी-
दोनों के मुह में पानी था.
सवाल ये है कि, ये सब अचानक याद कैसे आये.
तुम्हे भुलाने की कोशिश है, इतना भी नहीं जानती !
Bahut Achchha like hai !! aur Ye hi jindagi ki sachchhai hai !! :)
ReplyDelete"एक काटने तो दूसरा कटने"... सही! :P
ReplyDeleteकिसे भुलाने की कोशिश है???
swagat hai!
ReplyDeletebahut hi badhiya likhe hai.. :)
ReplyDeleteAnek shubh kamnaayen!
ReplyDeleteवाह बिपिन जी क्या बात है बहुत खूब जी ,हमारी भी ढेरों शुभकामनाएं
ReplyDeleteअजय कुमार झा
What a thought Bipin Bhai....
ReplyDeleteNever let ur pen stop..:)
हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें
ReplyDeleteBahut achcha .
ReplyDeletegood one bhai!
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