---------------------------------------------------------------------------------------
जिंदगी है तो मौत भी है,
लेकिन फिर जिंदगी ही क्यू है?
कितने ही आये और चले गए,
अंत क्या है?
और अगर ये अनंत है तो,
इसका मकसद क्या है?
क्या होता अगर जिंदगी ही ना होती?
क्या होता अगर पृथ्वी ही ना होती?
पृत्वी को बनाया किसने और क्यू?
ताकि लोग आये और चले जाये?
क्यू बना दिए जिव को ही जिव का भोजन,
क्यू देदी लोगो को भूक और प्यास?
क्यू तुम्हे खेलने का इतना शौक है,
और बना दिए हमे कठपुतली?
क्यूँ देते हो हमे माँ बाप,
जब हमे बिछड़ना ही है?
जैसे पहला इन्सान आया वैसे सरे लोग आते!
ना होते माँ बाप,
ना ही परिवार,
ना बाप से पाने की टेंशन,
ना बेटे के लिए जुटाने का टेंशन,
जी लेते खुद के लिए!
ना होते धर्म, ना होती जाती,
ना ही होते ये मार पिट!
क्यूँ बना दिए सब कुछ बिकाऊ ?
पैसे कमाने में जिंदगी चली जाये?
फिर भी पेट ना भरे तो काट लूँ दुसरो की जेबें
कर दू सबको बेघर खुद का घर बसने के लिए!
ना पैसा होता ना आमिर होते,
फिर कोई गरीब बदनसीब ना होता!
मुझे नहीं पता की जिंदगी के साथ मौत क्यू दी?
लेकिन जिंदगी के साथ जिंदगी क्यू नहीं दी?
और यही करना था तो जिंदगी के पहले ही मौत दे दिया होता!
जिंदगी है तो मौत भी है,
लेकिन फिर जिंदगी ही क्यू है?
कितने ही आये और चले गए,
अंत क्या है?
और अगर ये अनंत है तो,
इसका मकसद क्या है?
क्या होता अगर जिंदगी ही ना होती?
क्या होता अगर पृथ्वी ही ना होती?
पृत्वी को बनाया किसने और क्यू?
ताकि लोग आये और चले जाये?
क्यू बना दिए जिव को ही जिव का भोजन,
क्यू देदी लोगो को भूक और प्यास?
क्यू तुम्हे खेलने का इतना शौक है,
और बना दिए हमे कठपुतली?
क्यूँ देते हो हमे माँ बाप,
जब हमे बिछड़ना ही है?
जैसे पहला इन्सान आया वैसे सरे लोग आते!
ना होते माँ बाप,
ना ही परिवार,
ना बाप से पाने की टेंशन,
ना बेटे के लिए जुटाने का टेंशन,
जी लेते खुद के लिए!
ना होते धर्म, ना होती जाती,
ना ही होते ये मार पिट!
क्यूँ बना दिए सब कुछ बिकाऊ ?
पैसे कमाने में जिंदगी चली जाये?
फिर भी पेट ना भरे तो काट लूँ दुसरो की जेबें
कर दू सबको बेघर खुद का घर बसने के लिए!
ना पैसा होता ना आमिर होते,
फिर कोई गरीब बदनसीब ना होता!
मुझे नहीं पता की जिंदगी के साथ मौत क्यू दी?
लेकिन जिंदगी के साथ जिंदगी क्यू नहीं दी?
और यही करना था तो जिंदगी के पहले ही मौत दे दिया होता!
Bahut hi umda prayas.aapne jindagi ke har sawalon ko bahut hi ache dhang se prastut kiya hai. maan prasan ho gaya aapke shabdo ka prayog dekhke.
ReplyDeleteIn short " Yahi Zindagi hai, aur aise hi chalte rahegi"
Well thought.
ReplyDeleteare bipin bhai bilkul phod diya yaar......bahut hi mast likha hai.....tum to zindagi ke andar hi utar gaye :)
ReplyDeleteBahut gahrayee bhara soch hai jis soch ka koi ant nahi hota...aur aapke kavita ki jinti bhi tarif karoon uska bhi ant nahi hai:-)
ReplyDeletekya likhu aur kya nahi,
ReplyDeletejindgi ke es ab swal ka jwab
shyad kisi kavi aur darshnik ke pass
bhi nahi hoga,heart touching
फिर भी पेट ना भरे तो काट लूँ दुसरो की जेबें
ReplyDeleteकर दू सबको बेघर खुद का घर बसने के लिए!
बहुत खूब भाईजान| सचाई को कागज पर उतार दिया आपने| सुभान अल्लाह|
Thanks every one for appreciating the poem with your encouraging words.
ReplyDeleteMy fav line is
जैसे पहला इन्सान आया वैसे सरे लोग आते!
Thanks again.
Bahut khoob Bipin ji. Jo mai "usase" poochhana chahata hun, aapne bahut sunder dhang se poochha hai. yah kavita bataati hai ki aap prashn ke uttar paane hetu bahut gambheer hain.
ReplyDeleteDhanvad Manoj ji.
ReplyDeleteGambhir to hain lekin jabab milne mei bahut der lagega...
bahut khoob dost, intzaar rahega agli kavita ka!!!
ReplyDeleteShukriya rahega dost :)
ReplyDeleteApka intezar aaj sham tak khatm ho jayega :)
क्यों देते हो सपने, फिर क्यों खोल देते हो आँखें???
ReplyDelete...तूने तो मेरी आँखें खोल दी मेरे भाई!!!
बेटे आंखें बंद करके ही रहने में मजा है, खुलने के बाद घोर अँधियारा है.
ReplyDeletebahut hi badhiya kabita hai
ReplyDeleteaapne is kabita ke dwara
....................
sabki aankhe khol di
Thanks Bhai!
ReplyDelete