चाँद खामोश क्यों है इतना,
क्या वो सागर की लहरों में खो गया है ?
काश कोई बदल आ जाता, दोनों के बिच में,
मुझे मेरे चाँद की आवाज़ मिल जाती |
बादल भी क्या आया,आते ही बरस गया.
वो भी चाँद के साथ सागर में खो गया |
चाँद तो फ़िर भी वहीं है,
लेकिन कमबख्त बादल, वो तो सागर का ही हो गया |
हलाकि, बादल बह गया है सागर की लहरों में,
लेकिन इंतज़ार है मुझे, सुरज की गरम किरणों का |
ताकि आ जाए वो ( बादल ) ऊपर,
और ढंक ले मेरे चाँद को |
क्या वो सागर की लहरों में खो गया है ?
काश कोई बदल आ जाता, दोनों के बिच में,
मुझे मेरे चाँद की आवाज़ मिल जाती |
बादल भी क्या आया,आते ही बरस गया.
वो भी चाँद के साथ सागर में खो गया |
चाँद तो फ़िर भी वहीं है,
लेकिन कमबख्त बादल, वो तो सागर का ही हो गया |
हलाकि, बादल बह गया है सागर की लहरों में,
लेकिन इंतज़ार है मुझे, सुरज की गरम किरणों का |
ताकि आ जाए वो ( बादल ) ऊपर,
और ढंक ले मेरे चाँद को |
chand ki khamoshi mein bhi sitalta hai..
ReplyDeleteapni chandni woh jab jab jameen pe bikherta hai
Bahut hi ache se aapne apne bhawon ko chand, badal sagar mein tafdil kar diya
mast hai guru...alag style hai tumhara!!
ReplyDeleteKya bataye ab, ek IT professional itna achcha kaise likh sakta hai, soch rahe hai??, likh sakta hai bhai, talent chahiye wo v bihari talent.. poem is really very very super.. its cool like "MOON"...
ReplyDeleteGood work man..
ReplyDeleteKeet it up.
Thanks Prabhakar, Surendra, Prabhat and ♫▲⌡, appreciate karne aur manobal badhane ke liye.
ReplyDeleteबादल भी क्या आया,आते ही बरस गया.
ReplyDeleteवो भी चाँद के साथ सागर में खो गया |
बहुत ही चमत्कारी अभिव्यक्ति| काश कोई बदल ही आ जाता > आते ही बरस गया| आह, संयोजन प्रभावकारी है|
ढँक ले मेरे चाँद को|! सारी कहानी कह दिए आप|
बहुत ही बढ़िया भाई|
शाश्वत जी, तहे दिल से शुक्रिया.
ReplyDeleteबहुत दिल से लिखी हुई कविता है, और आपके दिल तक पहुंची , मुझे बहुत ख़ुशी हुई.
Bahut hi badhiya likha hain Bipn....I am impressed....kafi acchi imagination hain...aur aise hi acchi acchi kavita likho
ReplyDeleteGunjan
good poem...... keep it up....
ReplyDeleteअब तो बोल दे ये "चाँद" किस परी का नाम है? जिसकी चांदनी तुझे पागल कर देती है... :D
ReplyDeletebipin ji aap to shayar ho gaye...
ReplyDeletearre wah sahi hae...
ReplyDeleteThanks Gunjan - पहली बार impress होने के लिए.[;)]
ReplyDeleteThanks Vivek and Manju.[:)]
@Ganesh - गुजरा वो जमाना जब हम चाँद से बाते किया करते थे, अब तो हरेक "तारे" को कह देता हूँ, तू ही मेरी "चाँद" है.[:P]
@Aviral - मै शायर तो नहीं, मगर ऐ अवि, जब से देखा तुमको, मुझको शायरी आ गयी [:)]
I wish ki aapke chand ki khamoshi tute,grahan ke badal door ho jayen aur chand ki shital kirne aapke dil tak panhuche.
ReplyDeleteVery nice and romantic poem which directly goes to heart..keep it up and keep writing nice poems like this.
Thanks kalpana ji for your wishes and words of appreciation.
ReplyDeletebadal suraj aur boondey... UK ka mausam fihal wahi hai ;)
ReplyDeletesagar ke liye beach pe jana padega :D
bahut sahi likhte ho...
Sandy
aapki kavita sundar hain....
ReplyDeleteThis is also very good work, man.
ReplyDeleteKeep them coming!
Thanks Sandy and Following the Budha.
ReplyDeleteSure Kousik, and thanks for appreciation.
yaar mughe thoda context samjaho....ye chaand kisko kah rahe ho.....saagar kya hai....?
ReplyDeleteChaand ki lagan saagar ke leheron me fasaho,
ReplyDeletetoh aap sushaant taalaab baniye.
apne pratibimb ko aapmein jab dekegi chaand,
tab dubegi aankhon ki aaina mein !
Thanks Kavya. Shushant to mai hu hin, talab ka nahi pata :)
ReplyDelete