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तु प्रचंड रौशनी है,
और मैं घनघोर अँधेरा,
जहाँ तेरा अस्तित्व ना हो,
वहीँ मेरा बसेरा.
ये असंभव मेल भी है संभव,
अगर तु सिमट जरा,
तु बन जा टिमटिमाती दीया,
और मैं तेरे तले अँधेरा.
हमेशा हमेशा के लिए.
बहुत बढ़िया लिखे है... आप की ये कविता थोड़े से ही पंक्ति में बहुत कह जाती है.
ReplyDeleteThis poem really came from heart.
ReplyDeleteand have deep meaning.............Great......
wah kya prachand bhaw hai is kavita ke.. bahut khub.. :-)
ReplyDeleteVery well composed.. :) bhav ko shabdon me bayan karna mushkil hai lekin aapne gahari bhav ko yanha bohut khub bayan kiya hai.... bohut achche.. :)
ReplyDeleteOMG :) Bipin bhai ye kya likh diye hian aap iss baar ..
ReplyDeleteख़ूबसूरत भाव !
ReplyDeleteये असंभव मेल भी है संभव,
ReplyDeleteअगर तु सिमट जरा,
तु बन जा टिमटिमाती दीया,
और मैं तेरे तले अँधेरा.
हमेशा हमेशा के लिए
सुन्दर भाव और सुन्दर अभिव्यक्ति ......
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well written...
ReplyDeletebahut hi sundar, umda likhe hai bhrata.. aise hi apni rachnao se jagat mein khooshbu bhikherte rahiye
ReplyDeleteSabhi pathak gano ka tahe dil se shukriya.
ReplyDeletebahot khoob bipin sahab..
ReplyDeletelage rahiye
Thanks Ashish Bhai :)
ReplyDeleteAdbhut.. Keep on flowing :)
ReplyDeleteThanks a lot Ajay sir, I waited so long for you to read my poems. Ur words mean a lot to me...Thanks again..
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......
ReplyDeleteDhanyawad shiva jee ....
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