Wednesday, September 8, 2010

दीया तले अँधेरा


-------------------------------------------------------------------------

तु प्रचंड रौशनी है,
और मैं घनघोर अँधेरा,
जहाँ तेरा अस्तित्व ना हो,
वहीँ मेरा बसेरा.

ये असंभव मेल भी है संभव,
अगर तु सिमट जरा,
तु बन जा टिमटिमाती दीया,
और मैं तेरे तले अँधेरा.
हमेशा हमेशा के लिए.

16 comments:

  1. बहुत बढ़िया लिखे है... आप की ये कविता थोड़े से ही पंक्ति में बहुत कह जाती है.

    ReplyDelete
  2. This poem really came from heart.
    and have deep meaning.............Great......

    ReplyDelete
  3. wah kya prachand bhaw hai is kavita ke.. bahut khub.. :-)

    ReplyDelete
  4. Very well composed.. :) bhav ko shabdon me bayan karna mushkil hai lekin aapne gahari bhav ko yanha bohut khub bayan kiya hai.... bohut achche.. :)

    ReplyDelete
  5. OMG :) Bipin bhai ye kya likh diye hian aap iss baar ..

    ReplyDelete
  6. ये असंभव मेल भी है संभव,
    अगर तु सिमट जरा,
    तु बन जा टिमटिमाती दीया,
    और मैं तेरे तले अँधेरा.
    हमेशा हमेशा के लिए

    सुन्दर भाव और सुन्दर अभिव्यक्ति ......

    --
    ..
    ..

    ReplyDelete
  7. bahut hi sundar, umda likhe hai bhrata.. aise hi apni rachnao se jagat mein khooshbu bhikherte rahiye

    ReplyDelete
  8. bahot khoob bipin sahab..
    lage rahiye

    ReplyDelete
  9. Thanks a lot Ajay sir, I waited so long for you to read my poems. Ur words mean a lot to me...Thanks again..

    ReplyDelete
  10. आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......

    ReplyDelete