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दो चलते हुए खंभे,
उसके उपर एक ट्रांसफ़ॉर्मर,
उसके उपर पांच किलो का एक सुपर कम्प्युटर.
चलती है साँस तो मै मै हुं .
जो रुक गयी साँस तो मै कौन हुं ?
कुछ मछलियों का भोजन,
या एक हंडी बुझी हुई राख,
या पत्थर के बोझ से दबी,
जमीं से तीन फीट नीचे कुछ हड्डियाँ ?
या फिर डाइनिंग हॉल की दिवाल पे,
फोटो फ्रेम में कैद,
सफ़ेद मूंछे फहराते,
दो गज की पगड़ी में,
जकड़ा एक चेहरा ?
बेहतरीन अभिव्यक्ति !!
ReplyDelete0 तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – १० [श्रीकालाहस्ती शिवजी के दर्शन..] (Hilarious Moment.. इंडिब्लॉगर पर मेरी इस पोस्ट को प्रमोट कीजिये, वोट दीजिये
Very nice... awesome :)
ReplyDeleteबहुत गहराई है बातों में...
ReplyDeleteधन्यवाद विवेक जी और समीर जी (उड़न तस्तरी) - आपका ब्लॉग देखा क्या कमाल लिखते हीं आप.
ReplyDeleteI Enjoy reading your writing, good representation..
ReplyDeleteKeep Writing. :-)
Thanks Prabhat Bhai :)
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