कोई तो छुपा है,
खिड़की से ओट लेकर,
और गाड़े हुए है,
अपनी नज़रें मुझपर.
या ये मेरा ख़याल है,
जो पहुँच गया वहां,
ओढ़ ली आकृति,
और रखने लगी है मुझपे हीं नज़र.
मन तो होता है,
झांक लू खिड़की से
और जान लूँ , कि सच क्या है.
फिर सोचता हूँ,
कोई भी हो, क्या फर्क पड़ता है?
करता तो मैं वही हूँ, जो मन होता है.
अरे! कोई तो है जो
मुझे घर में होने का एहसास दिला जाता है.
वर्ना ये घर हीं क्यूँ?
bohut hi badiya... :)
ReplyDeletenice...:)
ReplyDeletereally nice.....kavi ban gaye ho ab tum.....software is secondary occupation... :)
ReplyDeleteबहुत ही सरल सोच अउर बढ़िया लेखन.. बहुत अच्छा...
ReplyDeletelines with deep meaning...!! Good one though..
ReplyDeletethanks Monu ji, aapka parichay?
ReplyDeletewah kya baat hai.. dil khush ho gaya..
ReplyDeleteअरे! कोई तो है जो
मुझे घर में होने का एहसास दिला जाता है.
kya line hai.. lage rahiye bhrata
Thanks bhrata!!
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